असीम कृपा के सागर – महावतार बाबाजी

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“पूर्व और पश्चिम को कर्म और आध्यात्मिकता से मिलकर बना सुवर्णमध्य मार्ग स्थापित करना होगा। भौतिक विकास में भारत को पाश्चात्य जगत से बहुत कुछ सीखना है और बदले में भारत सभी द्वारा अपनाई जा सकने वाली ऐसी विधियों का ज्ञान दे सकता है, जिनसे पाश्चात्य जगत अपने धार्मिक विश्वासों को योग विज्ञान की अटल नींव पर स्थापित कर सकता है।” संसार की सौ सर्वोत्कृष्ट आध्यात्मिक पुस्तकों में से एक के रूप में चयनित योगी कथामृत से उद्धृत ये शब्द हममें मृत्युंजय महावतार बाबाजी के कार्यों के विषय में जानने की उत्सुकता जगाते हैं, जिनकी कृपा अपरिमित है। श्री श्री परमहंस योगानन्द अपने इस गौरवग्रंथ में बाबाजी के विषय में ऐसे यथार्थ तथ्यों का उल्लेख करते हैं जिन्हें पढ़कर मानव-मन श्रद्धा और आनन्द से विभोर हुए बिना नहीं रहता।

अंधकार युगों में लुप्त क्रियायोग विज्ञान को जन-जन तक पहुँचाने के लिए बाबाजी अपने शिष्य लाहिड़ी महाशय, जो मिलिटरी इंजीनियरिंग विभाग में कार्यरत थे, का विस्मयकारी ढंग से रानीखेत में तबादला कराते हैं और उन्हें द्रोणगिरि पर्वत के शिखर पर बुलाते हैं। अपनी चमत्कारिक इच्छाशक्ति से एक महल का सृजन कर अपने शिष्य को सभी ऐहिक तृष्णाओं से मुक्त कर तथा क्रियायोग में दीक्षित कर संसार का त्याग करने वाले संन्यासियों के लिए ही नहीं अपितु सभी सच्चे जिज्ञासुओं को क्रियायोग सिखाने की वे अनुमति देते हैं। है ना अपार कृपा!

1920 में अमरीका में आयोजित होने वाले धार्मिक उदारतावादियों के अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में बोलने के लिए योगानन्दजी को एक निमंत्रण मिलता है। पश्चिम के भौतिकतावाद के कोहरे में खोने के भय से वे ईश्वर का उत्तर पाने के लिए कृतसंकल्प होते हैं; तब बाबाजी प्रकट होकर उनसे कहते हैं, “…डरो मत; तुम्हारा संरक्षण किया जाएगा।” यह दिन था 25 जुलाई का जिसे उनके स्मृति दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस उत्सव में भाग लेने के लिए इच्छुक पाठकगण yssofindia.org देख सकते हैं।

इसी दिन, योगानन्दजी से अपनी भेंट में बाबाजी इस बात का भी खुलासा करते हैं कि, “तुम्ही वह हो जिसे मैंने पाश्चात्य जगत में क्रियायोग का प्रसार करने के लिए चुना है।” वे कहते हैं— ईश्वर साक्षात्कार की वैज्ञानिक प्रणाली, क्रियायोग का अंततः सभी देशों में प्रसार हो जाएगा….” बाबाजी के इसी आदेश का पालन करने हेतु, परमहंस योगानन्दजी पूर्व में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया तथा पश्चिम में सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप की स्थापना करते हैं।

इसके अतिरिक्त कुम्भ मेले में श्रीयुक्तेश्वरजी को दर्शन देकर बाबाजी ‘कैवल्य दर्शनम्‌’ नामक पुस्तक, लिखने का आग्रह करते हैं। वे कहते हैं – मनुष्यों के धार्मिक मतभेदों के कारण उनकी मूल एकता पर किसी का ध्यान ही नहीं जा रहा है। समानार्थी उद्धरणों को प्रस्तुत कर यह दिखा दीजिए कि ईश्वर के सभी ज्ञानी पुत्रों ने एक ही सत्य का उपदेश दिया है।”

बाबाजी सर्वव्यापी ब्रह्मचेतना में निवास करते हुए जनसाधारण की दृष्टि से ओझल रहते हैं। इनके लिए देश और काल का कोई अस्तित्व नहीं है।बाबाजी पच्चीस वर्ष के युवा ही दिखते हैं। गौर वर्ण, मध्यम कद-काठी, सुंदर बलिष्ठ शरीर पर तेज सहज ही दिखाई पड़ता है। नेत्र काले, शांत और दयार्द्र हैं। उनके लंबे चमकीले केश ताम्र वर्ण के हैं। उनके इस अनूठे स्वरूप का मानसदर्शन कर हृदय गद्-गद् हो उठता है!

लाहिड़ी महाशयजी के कथन, “जब भी कोई श्रद्धा से बाबाजी का नाम लेता है, उसे तत्क्षण आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त होता है।” इसे निश्चित करने हेतु आइए उनका स्मरण कर उनकी अनंत अनुकंपा के भागीदार बनें।

लेखिका – डॉ (श्रीमति) मंजु लता गुप्ता

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