लाहिड़ी महाशय ने कहा है, “जब भी कोई श्रद्धा के साथ बाबाजी का नाम लेता है, उसे तत्क्षण आध्यात्मिक आशीर्वाद प्राप्त होता है।”
महान् गुरु लाहिड़ी महाशय का यह प्रसिद्ध उद्धरण, जिसका उल्लेख श्री श्री परमहंस योगानन्द ने अपनी पुस्तक ‘योगी कथामृत’ में किया है, अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से महावतार बाबाजी के विशुद्ध पारलौकिक महत्व और सभी निष्ठावान् अनुयायियों के जीवन पर उनके कालातीत प्रभाव को स्पष्ट करता है। लाहिड़ी महाशय के प्रमुख शिष्य स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि ने कहा था कि बाबाजी की आध्यात्मिक अवस्था मानवी आकलनशक्ति से परे है। फिर भी, यदि सामान्य व्यक्ति महान् गुरुओं, जिनमें बाबाजी अग्रगण्य हैं, की प्रेरणा और शिक्षाओं के साथ समस्वर होने का प्रयास करें, तो उन्हें अपनी आध्यात्मिक यात्रा में अत्यधिक लाभ प्राप्त होगा।
भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) के भक्तों और सम्पूर्ण विश्व में सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप (एसआरएफ़) के सदस्यों द्वारा, प्रत्येक वर्ष 25 जुलाई को प्रसिद्ध अमर गुरु महावतार बाबाजी का स्मृति दिवस मनाया जाता है। आध्यात्मिक उत्थान के क्रियायोग मार्ग की शिक्षाएँ सम्पूर्ण विश्व को महावतार बाबाजी, लाहिड़ी महाशय, स्वामी श्रीयुक्तेश्वर गिरि और सन् 1917 में वाईएसएस के संस्थापक श्री श्री परमहंस योगानन्द के द्वारा प्रदान की गई हैं।
बाबाजी ने आधुनिक युग में पाश्चात्य जगत् में भारत की प्राचीन क्रियायोग शिक्षाओं का प्रसार करने के लिए विशेष रूप से योगानन्दजी को चुना था। लाहिड़ी महाशय को क्रियायोग विज्ञान का ज्ञान प्रदान करते हुए, लाहिड़ी महाशय के अनुरोध पर, बाबाजी ने उन्हें सम्पूर्ण विश्व के सभी सच्चे सत्यान्वेषियों को यह पवित्र एवं गुप्त प्रविधि सिखाने की अनुमति दी थी। ‘योगी कथामृत ’ पुस्तक से हमें बाबाजी के लाहिड़ी महाशय के प्रति शाश्वत प्रेम—एक गुरु के अपने शिष्य के प्रति जन्म-जन्मान्तर तक रहने वाले शाश्वत प्रेम—के विषय में भी पता चलता है।
हिमालय में अपनी महत्वपूर्ण भेंट में बाबाजी ने लाहिड़ी महाशय से कहा था, “अपने बच्चे की रक्षा करने वाले पक्षी की भाँति मैं अन्धकार, तूफान, उथल-पुथल और प्रकाश में सतत तुम्हारे पीछे-पीछे चलता रहा।” और लाहिड़ी महाशय ने, हतप्रभ होकर परन्तु अपने गुरु के दिव्य आभामंडल में पूर्ण रूप से डूबे रहते हुए, उत्तर दिया, “मेरे गुरुदेव, मेरे पास कहने के लिए और क्या हो सकता है? कहीं किसी ने कभी ऐसे अमर प्रेम के बारे में सुना भी है?”
इस प्रकार ‘योगी कथामृत’ पुस्तक हमारी दृष्टि, हृदय, एवं आत्मा के सम्मुख एक सच्चे गुरु और एक उत्साही शिष्य के मध्य सम्बन्ध की विशालता, और यहाँ तक कि अनन्तता, को प्रकट करती है। श्री श्री परमहंस योगानन्द को अपने गुरु, श्रीयुक्तेश्वरजी और अपने परमगुरुओं से जीवन का उत्थान करने वाली और आत्मा को मुक्ति प्रदान करने वाली, क्रियायोग की जीवनशैली विरासत में प्राप्त हुई थी।
योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया इन शिक्षाओं पर आधारित विस्तृत आदर्श-जीवन पाठमाला भी प्रकाशित करती है और उन्हें सभी सदस्यों को मुद्रित और डिजिटल रूप में उपलब्ध कराती है। इस पाठमाला तथा साधना संगम और सम्पूर्ण भारत में संन्यासियों के दौरों में वाईएसएस संन्यासियों द्वारा आयोजित विशेष कक्षाओं के माध्यम से, ध्यान की प्रारम्भिक एवं उच्च प्रविधियों की शिक्षा प्रदान की जाती है।
इस प्रकार लाखों व्यक्ति अत्यन्त शक्तिशाली, तथापि सरलतापूर्वक सुलभ, महान् गुरुओं द्वारा सभी निष्ठावान् भक्तों को प्रदत्त, योग ध्यान की वैज्ञानिक प्रविधियों की उपलब्धता को जानने और उन्हें सीखने के लिए प्रेरित हुए हैं।
स्वयं महावतार बाबाजी के अविस्मरणीय वचन हैं, “संसार में रहकर भी जो योगी व्यक्तिगत स्वार्थ और आसक्तियों को त्याग कर पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करता है, वह ब्रह्मज्ञान प्राप्ति के सुनिश्चित मार्ग पर ही चल रहा होता है।”
तथा योगी कथामृत पुस्तक से हमें यह महान् एवं शिलावत् शक्तिशाली आश्वासन भी प्राप्त होता है, “बाबाजी ने सभी सच्चे क्रियायोगियों की लक्ष्यप्राप्ति के पथ पर रक्षा करने का एवं उनका मार्गदर्शन करने का वचन दिया हुआ है ।”
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लेखक : विवेक अत्रे